तुम्हें भूल जाना होगा समुद्र की मित्रता
और जाड़े के दिनों को
जिन्हें छल्ले की तरह अँगुली में पहनकर
तुमने हवा और आकाश में उछाला था,
पंखों में बसन्त को बांधकर
उड़ने वाली चिड़िया को पहचानने से
मुकर जाना ही अच्छा होगा

तुम्हारा पति अभी बाहर है, तुम नहाओ जी भरकर
आइने के सामने कपड़े उतारो
आइने के सामने पहनो
फिर आइने को देखो इतना कि वह तड़कने को हो जाए
पर तड़कने के पहले अपनी परछाई हटा लो
घर की शान्ति के लिए यह ज़रूरी है
क्योंकि वह हमेशा के लिए नहीं
सिर्फ़ शाम तक के लिए बाहर है

फिर याद करते हुए सो जाओ या चाहो तो अपनी पेटी को
उलट दो बीचोंबीच फ़र्श पर
फिर एक-एक चीज़ को देखते हुए सोचो
और उन्हें जमाओ अपनी-अपनी जगह पर

अब वह आएगा
तुम्हें कुछ बना लेना चाहिए
खाने के लिए और ठीक से
हो जाना होगा सुथरे घर की तरह

तुम्हारा पति
एक पालतू आदमी है या नहीं
यह बात बेमानी है
पर वह शक्की हो सकता है
इसलिए उसकी प्रतीक्षा करो
पर छज्जे पर खड़े होकर नहीं,
कमरे के भीतर वक़्त का ठीक हिसाब रखते हुए

उसके आने के पहले
प्याज़ मत काटो
प्याज़ काटने से शक की सुरसुराहट हो सकती है

बिस्तर पर अच्छी किताबें पटक दो
जिन्हें पढ़ना क़तई आवश्यक नहीं होगा
पर यह विचार पैदा करना अच्छा है
कि अकेले में तुम इन्हें पढ़ती हो…

चन्द्रकान्त देवताले की कविता 'मैं आता रहूँगा तुम्हारे लिए'

Book by Chandrakant Devtale:

चन्द्रकान्त देवताले
साठोत्तरी हिंदी कविता के प्रमुख हस्ताक्षर देवताले जी उच्च शिक्षा में अध्यापन कार्य से संबद्ध रहे हैं। देवताले जी की प्रमुख कृतियाँ हैं- हड्डियों में छिपा ज्वर, दीवारों पर खून से, लकड़बग्घा हँस रहा है, रोशनी के मैदान की तरफ़, भूखंड तप रहा है, हर चीज़ आग में बताई गई थी, पत्थर की बैंच, इतनी पत्थर रोशनी, उजाड़ में संग्रहालय आदि।