‘Hum Dono’, a poem by Shahbaz Rizvi
हम दोनों का रिश्ता दुःख का रिश्ता था
हम दोनों एक दूजे के संग रो सकते थे
हम दोनों एक दूजे के संग रोये भी
फिर हम में से एक ने हँसना सीख लिया
हम दोनों की आँखें बोझल आँखें थीं
हम दोनों के ख़्वाब बड़े नखरीले थे
हम दोनों ने रात की चादर फाड़ी थी
फिर हम में से एक ने सोना सीख लिया
हम दोनों एक बस्ती के दो बरगद थे
हम दोनों पे बच्चे झूला करते थे
हम दोनों को माँएँ कोसा करती थीं
फिर हम में से एक ने चलना सीख लिया
हम दोनों एक दरिया के शैदाई थे
हम दोनों पे आग की वहशत तारी थी
अब हम दोनों के मरने की बारी थी
फिर हम में से एक ने जीना सीख लिया!
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