‘तुम्हारी…’ लिख के
जहाँ तुम अपना ख़त
समाप्त करती हो,
मैं ठीक वहीं से बाँचना
शुरू करता हूँ.. तुम्हारा खत
और.. पढ़ते-पढ़ते
ऊपर वैसे ही आता हूँ,
जैसे.. ‘समुद्र-तल’ से
ख़ज़ाने लेकर सतह पे
आता हो.. गोताखोर कोई..