एक पूरी आत्मा के साथ
एक पूरी देह हूँ मैं
जिसे धारण करते हैं ईश्वर कभी-कभी
मैं एक आत्मा
एक देह
एक ईश्वर से अधिक हूँ।

ईश्वर युगों में सुध लेते हैं
इस पृथ्वी की
इस पृथ्वी के किसी भू-भाग पर
जन्म लेते, करते हैं लीलाएँ
और अन्तर्ध्यान हो जाते हैं
यहाँ अपने रहने की क्षमता से बहुत पहले।

मैं ऐसा नहीं कर पाता हूँ
किसी भी जगह पर जन्म लेकर
पूरे ब्रह्माण्ड के लिए सोचता हूँ
अपनी क्षमता से अधिक रहने की कोशिश करता हूँ।

नवल शुक्ल की कविता 'अब मैं कैसे प्यार करता हूँ'

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