‘Jeewanotsav’, a poem by Harshita Panchariya

क़तार में लगे है अनगिनत दीप,
कि रोशन करेंगे संसृति को,
उसी मानिंद जैसे नभ को
आभित करते है सैंकड़ो तारे।
बिना इस बात से व्यथित हुए,
कि कितना तेल शेष है
या कितनी गढ़ी है कालिख।
कालिख जो साक्षी है,
प्रज्ज्वलित होते दीप की प्रतिष्ठा की,
प्रतिष्ठा जो हमेशा छोड़ जाती है कालिख
हल्के या गहरे रंग की।
गहरा रंग सोख लेता है,
यश के तमाम स्त्रोतों को,
जैसे समाहित कर लेती है अग्नि,
जीवतता के तमाम प्रमाणों को।
इसलिए आवश्यक है अग्नि का
प्रज्ज्वलित होना दीपोत्सव में
रुई के तंतुओ के बीच,
उसी भाँति जैसे
अंतिमोत्सव में
आवश्यक है अग्नि का प्रज्ज्वलित होना
देह के तंतुओ के बीच,
बिना इस बात से व्यथित हुए,
कि नश्वरता का ताप कितना
व्यापक और रोशन है।