पढ़ती थी शक्ल-सूरतें, कमाल थी आंखें,
औंधे मुंह गिर पड़ी हैं, होशियार सी आंखें।
जंचती नहीं काजल में भी, उदास ये आंखें,
चुपचाप हो गई हैं, वाचाल सी आंखें।
हंसती नहीं, रोती नहीं, हताश हैं आंखें,
बस देखती रहती हैं, चार-सू कही आंखें।
थक के रो चुकी हैं, जार-जार हैं आंखें,
रोके थक चुकी हैं, बार-बार ये आंखें।
उदासीन हो चली हैं, तलबगार थी आंखें,
दिखती नहीं इनको, कोई कैसी भी अब आंखें।