बहुरंगी तितली-सी
आशा
आकांक्षा
फूल से फूल तक फुदकती है
काँटों से उलझ कर बिखर जाते हैं पंख
अक्सर
ज़हरीले और निर्गन्ध सिद्ध होते हैं फूल
और रंग सिर्फ़ सम्मोहन
दृश्य
अब एक आम घटना है
दरअसल
हममें से हरेक की खोपड़ी
कम-ओ-बेश युद्ध का मैदान बन चुकी है
जहाँ दिन और रात
वाद से प्रतिवाद तक
जद-ओ-जहद जारी है
भ्रूण हत्याओं और हत्याओं का सिलसिला
और फिर
थकान से जन्मे
एकतरफ़ा युद्ध विराम
दरअसल हममें से हरेक की ज़िन्दगी
एक दस्तावेज़ है
गुप्त और लहूलुहान।