‘Matr aur Matrbhoomi’, poems by Harshita Panchariya

मेरे लिए मातृ और मातृभूमि में
इतना ही अन्तर रहा
जितना धर्म और ईश्वर में रहा
धर्म मानव बनने का ज़रिया मात्र है,
और ईश्वर ज़िन्दगी जीने की एकमात्र वजह।

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अंतिम कामना के तौर पर मैंने माँगना चाहा,
अपने देश की मिट्टी का ठिकाना
साँसों की स्मृतियों के तौर पर
इस महक की वैधता टिकाऊ और स्थाई है।

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जब महत्त्वता की बात आयी
तो मेरे लिए पहली प्राथमिकता
मेरे देश की मिट्टी ही रही
क्योंकि
माँ की कोख का साथ मात्र नौ माह रहा
जबकि इस मिट्टी से जीवन पर्यन्त।

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मेरी माँ जितना मुझसे प्रेम करती है
उतना ही मेरे भाई से भी
छोटी-छोटी लड़ाई पर
माँ मेरी है… माँ मेरी है…
कह देते हैं हम,
यह भलीभाँति जानते हुए
कि माँ पर हम दोनों का समान अधिकार है
बावजूद इसके
हम अभी तक समान नहीं हो पाए।