कविता संग्रह ‘तुम्हें सौंपता हूँ’ से
यूँ ही कुछ मुस्काकर तुमने
परिचय की वो गाँठ लगा दी!
था पथ पर मैं भूला-भूला
फूल उपेक्षित कोई फूला
जाने कौन लहर थी उस दिन
तुमने अपनी याद जगा दी।
कभी-कभी यूँ हो जाता है
गीत कहीं कोई गाता है
गूँज किसी उर में उठती है
तुमने वही धार उमगा दी।
जड़ता है जीवन की पीड़ा
निस्-तरंग पाषाणी क्रीड़ा
तुमने अन्जाने वह पीड़ा
छवि के शर से दूर भगा दी।
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