अपना पसंदीदा संगीत सुनते हुए
अपना पसंदीदा संगीत सुनते हुए मैंने जाना
जब कोई धुन पहुँचती है गंतव्य तक सही-सलामत
तब पैर थिरकने से पहले
थिरकती है आत्मा
जीवन के तार अक्सर
देह के मध्य में होते हैं कहीं
ऋतुओं के गीतों पर झूमती हैं जैसे पत्तियाँ
जैसे खेलते हुए बच्चों के कण्ठ से फूटता है संगीत
मीठे पानी की किसी धार की तरह
पर प्रचलित धुनों के इतर भी है संगीत
जिसकी खोयी हुई है लय कहीं इधर-उधर
जैसे ग़फ़लत में निकली किसी धुन के सहारे
काट लेता है अपना जीवन
कोई मज़दूर
जैसे किसी वाद्ययंत्र की तरह फूँकती है फूँकनी गृहिणी कोई
कि बनी रहे उसके चूल्हे की आँच
दरअसल यह एक ख़ास क़िस्म की व्यवहारकुशलता है
कि बचा रहे संगीत जीवन में किसी तरह
गुमशुदा न हो जाए कहीं!
एक ईमानदार आत्मवक्तव्य
विस्मृति के लिए अपनाया था मैंने
दमन का सिद्धांत
अब मैं नाख़ुश हूँ इस पलायनवाद से
यथार्थ को ठीक-ठीक गुन पाने का साहस भी तो नहीं मुझमें
कितना कठिन है अंतर्विरोधों के बीच ख़ुश रह पाना!
बार-बार जागृत होतीं स्मृतियों में
एक तुम्हारी मुस्कुराहट ही तो है
जिसमें लेती है उसाँस एक मुकम्मल ज़िन्दगी
बस वहीं ठहर जाना चाहती हूँ मैं
वहीं मेरा कल्पना-लोक है, वही यथार्थ भी!
समिधा
एक समिधा तैयार की मैंने
पलाश की
जिसमें भस्म की जा सकें
प्रेम की निष्कासित स्मृतियाँ
पर कुण्ड में प्रज्वलित अग्नि के
ऊर्ध्वाधर उठते धुएँ ने
दोषमुक्त किया मेरी आँखों को
स्मृतियों का मोल समझाया!
टटकेपन का होता है अपना एक ताव
आसमान रोता है रात-भर
पृथ्वी में घोल देता है अपनी उदासी
रात में मेयार अलग होते हैं ख़ूबसूरती के
सुबह का सूरज
अपने ताव में चमकता है…