विजेता और अपराधी

नाम और जन्म के अपराधी थे,
जन्म का परिचय बता
गड़ा लेते नज़र ज़मीन पर,
लज्जा, हीनता, हार, बेबसी और भाग्य के अभिशाप से।

नाम और जन्म के विजेता थे,
तिर्यक विद्रूप होठों और माथे की सलवटों में
उपहास, उपेक्षा और अपमान का था अधिकार
और तन जाते थे अहंकार और अभिमान से
नाम और जन्म का परिचय पूछकर या पूछे जाने पर।

सुदर्शन पुरुष और स्त्रियाँ

स्त्रियों के रूप रंग से
स्त्रियों के रूप रंग पर
ठहर जाने वाली दुनिया में भरी हैं बातें,
कविताएँ।
साहित्य और इतिहास भी ओतप्रोत और दिग्भ्रमित हैं।
आत्मविस्मृत होने
मदहोश होने, विक्षिप्त होने, खो जाने से लेकर मर जाने तक,
स्त्रियों के सौन्दर्य पर टिकी हुई रचनाएँ और जैसे इसी धुरी पर घूमती-सी दुनिया।
कभी क्यों नहीं लिखा किसी स्त्री ने
पुरुष के रूप को मादक या आकर्षक?
लिखा भी तो सम्भल के भक्ति-भाव का दीवानापन,
कृष्णा की भुवन-मोहिनी छवि के चारों ओर,
या सुदर्शन राम के प्रति समर्पण से आप्लावित पैरों के नाख़ून से मिट्टी कुरेदती किसी  किशोरी का विवरण
या फिर शूर्पणखाओं की धृष्टता पर क्षमाविहीन वार का जयगान।