Poems: Yogesh Dhyani
कठघरे में भूमिका
सन्देह से परे था
तुम्हारा प्रेम
फिर क्यों
हाथ आया विछोह
अनुपस्थित था शायद कोई
तुम्हारी प्रार्थना से
असम्भव है मान पाना
कि तुमने नही माँगा मुझे
अपनी प्रार्थना में
कठघरे में खड़ी होती है
हर बार की तरह
उसी की भूमिका
जिससे निरन्तर की गयीं
प्रार्थनाएँ।
वो बात
वो बात
तब तक नहीं ले पायेगी,
एक प्रभावी आकार
जब तक कि, की जाती रहेगी
एक जबरन कोशिश
उसे लिखे-कहे जाने की
देखना एक दिन
वो बात
ज़रूरी गहराइयाँ पाकर
बह निकलेगी स्वतः
निर्झरणी के प्राकृतिक रूप में
और खींच लेगी उसका ध्यान
अपने उबड़-खाबड़ किनारों के
बाद भी।
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