‘Potli Bhar Rahat’, a poem by Ruchi
तुम्हारा प्रेम मेरे तकिये-सा रहा
जिसके न मैंने कभी ख़्वाब देखे
न हमेशा याद किया, बस याद
आयी तो अपने गाढ़े समय में,
सीने में भींच रोने या सोने के लिए।
तुम्हारे प्रेम को मैंने अपने
घर के यूकेलिप्टस-सा जाना,
हमेशा एक अलग-सी आदतन
उपस्थिति दर्ज कराता हुआ।
पर हर दर्द में विशेष रहा,
अपने अर्क से दर्द सोखता हुआ।
तुम्हारा प्रेम राह के गति अवरोधक-सा रहा,
सामीप्य से अवरुद्ध हो जाता मन-मस्तिष्क,
साँसों का थमना, धड़कनों का बढ़ना,
और फिर क्षणिक स्थगन के बाद,
पुनः जीवन प्रवाह में गुज़रना।
तुम्हारे प्रेम को मैंने नमक-सा जाना
न कम ना ज़्यादा, बस ज़रूरत-भर का,
ज़िन्दगी में स्वाद भरने के लिए तो
कभी मन की गाँठों पर सेंक
पहुँचा पोटली-भर राहत के लिए।
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