गरदन के नीचे से खींच लिया हाथ।
बोली—अंधकार हयनि (नहीं हुआ
है)! सड़कों पर अब तक घर-वापसी
का जुलूस। दफ़्तर, दुकानें, अख़बार
अब तक सड़कों पर। किसी
मन्दिर के खण्डहर में हम रुकें? बह
जाने दें चुपचाप इर्द-गिर्द से समय?
गरदन के नीचे से उसने खींच ली
तलवार! कोई पागल घोड़े की तेज़
टाप बनकर आता है। प्रश्नवाचक
वृक्ष बाँहों में। डालों पर लगातार
लटके हुए चमगादड़। रिक्शे वाला
हँसता है चार बजे सुबह—अंधकार
हयनि (नहीं हुआ है)। सिर्फ़,
एक सौ रातों ने हमें बताया, कि
शाम को बन्द किए गए दरवाज़े
सुबह नहीं खुलते हैं।

राजकमल चौधरी की कविता 'नींद में भटकता हुआ आदमी'

Book by Rajkamal Chaudhary:

राजकमल चौधरी
राजकमल चौधरी (१३ दिसंबर १९२९ - १९ जून १९६७) हिन्दी और मैथिली के प्रसिद्ध कवि एवं कहानीकार थे। मैथिली में स्वरगंधा, कविता राजकमलक आदि कविता संग्रह, एकटा चंपाकली एकटा विषधर (कहानी संग्रह) तथा आदिकथा, फूल पत्थर एवं आंदोलन उनके चर्चित उपन्यास हैं। हिन्दी में उनकी संपूर्ण कविताएँ भी प्रकाशित हो चुकी हैं।