रोज़ किसी नयी जगह से नयी जगह के बीच चलने से दूरी कितनी दूर थी, का अहसास नहीं रहता। वे रोज़ अलग-अलग किसी नयी जगह से नयी जगह के बीच चलते थे। ऐसा करते-करते दोनों एक दिन अग़ल-बग़ल लेटे के दृश्य में आ गए थे। तकिया एक ही था। रोमिल ने कहा- “आ जाओ दोनों एक ही में सर रख लेते हैं”, तो लड़की, जिसका नाम रूहानी था, ने यह सोचकर कि तकिया कहीं प्रेम का तकिया ना हो, रोमिल से कहा, “तुम ही रख लो”। रोमिल ने तकिए को बातों के तकिये की तरह अपने सर के नीचे रख लिया और वर्तमान में लेटा रहा। रूहानी बिस्तर को यादों का बिस्तर समझ अतीत की करवट लेट गयी।

रोमिल ने कहा कुछ बात करो, तो रूहानी यादों की बातें करने लग गयी। उसने रोमिल को अपने पुराने प्रेमियों के बारे में बताना शुरू कर दिया। बताना गिनाने जैसा था, दरअस्ल उसके प्रेमी अलग-अलग प्रांतों से थे, रोमिल को यह भारत दर्शन जैसा जान पड़ा। उसे लगा जब ये देशाटन ख़त्म होगा, रूहानी वर्तमान में आकर उसके साथ लेट जाएगी। जो तकिया उसके पास था, वह अंततः प्रेम का तकिया हो सकेगा और दोनों उसके वर्तमान में सर रख लेंगे।

रूहानी ने अपने पुराने प्रेमियों के बारे में बताना बंद नहीं किया, रोमिल को लगा कि जब हम किसी के प्रेम में होते हैं और ये चाहते हैं कि कोई हमारे प्रेम में पड़ जाए तो उसके पुराने प्रेमी भूत की तरह वर्तमान में घुस आते हैं और एक विघ्न की तरह हमारा अनुष्ठान भंग करते रहते हैं। रोमिल को लगा वह एक ऋषि है, जो वरदान प्राप्ति की इच्छा से अपने इष्ट को मनाने का यज्ञ कर रहा है और रूहानी के एक्स, राक्षस की तरह बारी-बारी से यज्ञ की अग्नि में पानी डाल रहे हैं और सारी पूजा सामग्री इधर-उधर फेंक रहे हैं।

थोड़ा नज़दीक आ जाने के बाद जो दूरी बचती है, उसे तय करना सबसे कठिन होता है। देखा जाए तो नज़दीकी और दूरी एक-दूसरे के विलोम न होकर, एक-दूसरे के पूरक हैं। नज़दीकी का परिमाप जितना होता है, बिलकुल उतनी ही दूरी बरहमेश तय करने को बची रहती है।

बहरहाल रूहानी अपने पुराने प्रेमियों के बारे में मन भर बता चुकी थी और रोमिल के यज्ञ की अग्नि लगभग ठंडी हो चुकी थी। इतने में रूहानी ने रस्मअदाएगी की तरह कहा, “रोमिल, तुम्हारी भी तो एक प्रेमिका थी ना! तुमने कुछ बताया नहीं उसके बारे में।”

यह एक ऐसी रस्म है जिससे आप चाह कर भी बच नहीं सकते। रोमिल ने सोचा कि जिस व्यक्तिगत भूत से वह पीछा छुड़ाना चाह रहा है, रूहानी ने उसे प्लेन चिट जैसी किसी विधि से वापस बुला लिया है और एक पल को वह खो सा गया। अगले ही पल सम्भलते हुए उसने अपनी प्रेमिका के बारे में यह सोचकर बताना शुरू किया कि इतना ज़्यादा नहीं बताऊँगा कि रूहानी को यह न लग जाए कि वह अभी तक उसके प्रेम में है, और इतना कम भी नहीं बताऊँगा कि उसे ऐसा लगे जैसे मैंने कभी प्रेम किया ही न हो।

बताना शुरू करते ही रोमिल ने तकिया, जो अब उसे यादों का लगने लगा था, रूहानी की तरफ़ सरका दिया। रूहानी ने बातों के तकिए की तरह उसे ले लिया।

बात यह थी कि रोमिल की प्रेमिका उसे छोड़ गयी थी और वह उसके बारे में बताना कुछ ख़ास पसंद नहीं करता था कि इससे उसका ‘मेरे साथ ग़लत हुआ’ का अहसास बढ़ न जाए। ख़ैर जैसे-तैसे रोमिल ने अपनी प्रेमिका के बारे में रूहानी को बताया और अपनी बात ख़त्म की। रूहानी ने कभी आँखें बंद करके, कभी खोल के रोमिल की बात सुनी। इसके बाद दोनों के बीच एक निर्वात सा बन गया और मौन न जाने कब आकर दोनों के बीच भविष्य की तरह लेट गया।

जब हम अपने पहले के प्रेमों के दुःख किसी से बयाँ करते हैं तब तलाश तो एक हमदर्द कंधे की होती है पर वह कंधा कहीं फिर पहले प्रेम और बाद में दुखों का कंधा न बन जाए इसके लिए हम मौन जैसे किसी अदृश्य कंधे पर सर रख कर अंदर-अंदर रो लेते हैं। ऐसा करते हुए जब एक-दूसरे पर नज़र गिरती है, हम असहज मुस्कुराहट वाले चेहरे लिए होते हैं।

मौन टूटे, यह सोचकर रोमिल ने कहा “चाय पियोगी?”, जबकि रोमिल सिगरेट पीना चाहता था। बातें फिर ज़्यादा न होने लग जाएँ, यह सोचकर रूहानी ने कहा “सिगरेट जला लो!”, जबकि वह चाय पीना चाहती थी। सिर्फ़ सिगरेट जला ली गयी, जबकि दोनों सिगरेट के साथ चाय भी पी सकते थे।

जब हम पहले प्रेम कर चुके होते हैं और फिर प्रेम करने की हिम्मत जुटा लेते हैं तो फिर चोट खा जाने का डर उस हिम्मत के साथ साया बनकर चिपका होता है, एक ऐसी परछाईं की तरह जो अपने शरीर से भी कहीं ज़्यादा असली और दृढ़ होती है।

ऐसे प्रेम में जब प्रेमी कुछ कहता है, प्रेमिका को पुराने प्रेम की कोई बातचीत याद आती है। जब प्रेमिका कुछ कहती है, प्रेमी को अपने पुराने प्रेम की कोई बात याद आती है। दोनों का एक साथ एक-दूसरे से बातचीत में होना और एक दूसरे की यादों में होना मुश्क़िल होता है, बिल्कुल धूप और छांव के मिल पाने की तरह। जब तक धूप और छांव पास आते हैं, शाम हो आती है और वर्तमान को भविष्य का भय सताने लगता है।

शाम से याद आया कि उस दिन की शाम हो गयी थी, रूहानी को अब किसी नयी जगह लौटना था ताकि फिर वहाँ से किसी नयी जगह वह जा सके। रोमिल किसी ऐसी नयी जगह जाना चाहता था, जहाँ से जब वह दूसरी नयी जगह जाए तो रूहानी जिस नयी जगह जाएगी वह जगह उसे पास पड़े, जहाँ शायद अग़ल-बग़ल लेटे का कोई दृश्य फिर बन पड़े। दोनों निकल पड़े।

रोमिल उस दिन यदि कह सकता तो सीधे कहता कि वह तब रूहानी को बेतहाशा चूमना चाहता था जब वह अपने पुराने प्रेमियों के बारे में बता रही थी। वह चूम सकता तो इस क़दर उसे चूमता कि चूमते-चूमते रूहानी की स्मृतियों को चूम लेता और रूहानी को पता भी न चलता उस तरह अपने होठों से उसके पुराने प्रेमियों के सारे नाम मिटा देता और एक नया नाम लिखता -‘रूहानी का रोमिल’। वह ‘रोमिल की रूहानी’ भी लिख सकता था। रोमिल को चुम्बन के जादू पर ईश्वर-सा भरोसा था, बशर्ते कि वह दिखा पाता।

रूहानी उस दिन सीधे कुछ कहना ही नहीं चाहती थी, सीधे कहने से वह स्पष्ट हो जाएगी यह सोचकर। रूहानी को ब्लर्ड तस्वीरें पसंद हैं कि जिनसे कुछ अंदाज़ा न लगाया जा सके, और भूत, वर्तमान या भविष्य जो चाहो वह दिखाया जा सके। रोमिल के साथ उसका प्रेम गंभीर न हो जाए यह सोचकर उसने अपने पुराने प्रेमियों के क़िस्से- ‘रोमिल को सब मालूम होना चाहिए’ की शक्ल उसे सुनाए। उसे नहीं मालूम कि रोमिल उसके प्रेम में पहले ही गंभीर है और वह उसके प्रेमियों की फ़ेहरिस्त में (शायद) एक और नाम बन जाने से नहीं डरता। वह रूहानी के साथ जितना हो सके जीना चाहता है।

सच कहूँ तो उस दिन दोनों के बीच एक चुम्बन हुआ था, दोनों जब किसी अलग-अलग नयी जगह जा रहे थे उस वक़्त। रूहानी की नज़र में चुम्बन ब्लर्ड था, जिसकी तीव्रता और सुंदरता दोनों का निर्धारण एक भुला दी जा सकने वाली घटना की तरह किया जा सकता था। रोमिल को न जाने उस वक़्त अपनी पुरानी प्रेमिका की क्यूँ याद आयी। रोमिल को अब ईश्वर के जादू पर चुम्बन-सा भरोसा हो गया था।

हर एक्स में न जाने कौन सा X फ़ैक्टर होता है जो वर्तमान प्रेम में कभी नहीं हो सकता, जबकि एक्स प्रेम जब वर्तमान रहता है, हमें यही X फ़ैक्टर दिखाई नहीं देते।

फिर एक नयी जगह जाते हुए रोमिल ने पुरानी नयी जगह को पीछे पलट कर देखा और सोचा- “जीवन, मृत्यु तक सिर्फ़ बेहतर की तलाश में है।”

रूहानी ने जिस नयी जगह वह जा रही थी उसी तरफ़ मुँह करके सोचा – “जीवन किसी कमतर के साथ ठहर जाने और उसे ही ठीक से जीने में भी हो सकता है।”

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अनुराग तिवारी
अनुराग तिवारी ने ऐग्रिकल्चरल एंजिनीरिंग की पढ़ाई की, लगभग 11 साल विभिन्न संस्थाओं में काम किया और उसके बाद ख़ुद का व्यवसाय भोपाल में रहकर करते हैं। बीते 10 सालों में नृत्य, नाट्य, संगीत और विभिन्न कलाओं से दर्शक के तौर पर इनका गहरा रिश्ता बना और लेखन में इन्होंने अपनी अभिव्यक्ति को पाया। अनुराग 'विहान' नाट्य समूह से जुड़े रहे हैं और उनके कई नाटकों के संगीत वृंद का हिस्सा रहे हैं। हाल ही में इनका पहला कविता संग्रह 'अभी जिया नहीं' बोधि प्रकाशन से प्रकाशित हुआ है।