‘Tab Aana’, a poem by Niki Pushkar
अब आए हो?
इतनी देर से?
जब वयस-भानु अस्ताँचल में जाने को है
अब कौन तुम्हारा स्वागत करेगा
पुष्प अपनी पंखुड़याँ समेटे
सोने को हैं मीठी नींद
पखेरू अपने नीड़ों में आकर दुबक चले
मनुज दिन-भर की यात्रा तय कर
अपने ठौर को लौट रहे
इस अवसान में,
सबकी नज़रें संदेह से हमें टोह रही हैं
अब मिलना उचित न होगा, जाओ…
हाँ… आना तब,
जब अगले जन्म का सूर्य उदय होगा
यौवन-विहान में जब चारो दिशाएँ
गा रही होंगी प्रभाती-राग
जब प्रकृति में गूँजेगा षोडषी-गान
जब सुमन विहँस करेंगे मिलिंद का स्वागत
जब जगत लेगा मिलन-आलाप
मैं तब तुमसे वह बात सुनूँगी
मैं तब तुमसे वह बात कहूँगी
तुम तब तक यूँ ही धीर धरना
मैं तब तब यूँ ही प्रतीक्षित रहूँगी…
३०/१२/२०१९