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माफ़ीनामा
"फ़ोन हाथ में था और नम्बर ज़हन में, डायल किया, सोचा, नाहक़ दिल दुखाया, मना लूँ। कैसा लगता है जब हम अपनी ग़लतियों की मुआफ़ी के लिए सर पटकने के लिए कोई पत्थर ढूंढ़ रहे होते हैं, तब कोई लम्हा हमारी ख़िलाफ़त करता हुआ हमारे हाथ में एक पत्थर थमा के चला जाता है। हम पत्थर को सिर पर मारना भूलकर किसी और की तरफ़ फेंक देते हैं। ऐसा होता है, मगर क्यों होता है?"