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दिसम्बर
दिसम्बर एक दौड़ है
पतली-सी रेलिंग पर भागती हुई
गिलहरी की दौड़
जिसे कहीं जाना नहीं है
रुकना है यहीं
बग़ल के किसी सूखते
सेमल की कोटर में
ठण्ड के थोड़ा...
नवागत
'Navagat', a poem by Kavita Nagar
साल के आख़िरी महीने के
कान में पड़ रहा है धीमा स्वर,
गूँज रहा है नये साल का गीत।
बिखर रही हैं स्वर...
वो पहली कविता
???
जब सूरज देर से उगता है
चांदनी दुपहरी तक रुकती है
तितलियों के बिछलते पंख
मिलकर साजों से बजते हैं
असंख्य मधुर तान उठती है
गुलालों से भरी हथेलियों...