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हसनैन जमाल के नाम एक ख़त (अपनी शायरी के हवाले से)
भाई हसनैन!
आपने कई बार ग़ज़लें माँगीं और मैं हर बार शर्मिंदा हुआ कि क्या भेजूँ? ऐसा नहीं है कि पुराने शेरी मजमूए के बाद...
गहरी रात है और तूफ़ान का शोर बहुत
'Gehri Raat Hai', ghazal by Zeb Ghauri
गहरी रात है और तूफ़ान का शोर बहुत
घर के दर-ओ-दीवार भी हैं कमज़ोर बहुत
तेरे सामने आते हुए घबराता...
दिल को लेकर हमसे अब जाँ भी तलब करते हैं आप
'Dil Ko Lekar Humse', by Nazeer Akbarabadi
दिल को लेकर हमसे अब जाँ भी तलब करते हैं आप
लीजिए हाज़िर है पर ये तो ग़ज़ब करते...
इक मरुस्थल इक समुंदर
इक मरुस्थल, इक समंदर।
पा रहा हूँ अपने अंदर।
यूँ तुम्हारे दिल से निकला
जैसे लौटा था सिकंदर।
फिर उड़ेंगे खग नए कल
हमसे सुंदर, तुमसे सुंदर।
थकके लौटे ज्वार...