‘Dil Ko Lekar Humse’, by Nazeer Akbarabadi

दिल को लेकर हमसे अब जाँ भी तलब करते हैं आप
लीजिए हाज़िर है पर ये तो ग़ज़ब करते हैं आप

मोरिद-ए-तक़्सीर गर होते तो लाज़िम थी सज़ा
ये जफ़ा फिर कहिए हम पर किस सबब करते हैं आप

करते हो अबरू से कुश्ता, रुख़ से देते हो जिला
हुस्न में एजाज़ क्या क्या रोज़-ओ-शब करते हैं आप

क़ैस से जो था किया दर-पर्दा लैला ने सुलूक
सो वही ऐ मेहरबाँ हम से भी अब करते हैं आप

बेकली होती है हसरत से दिल-ए-सद-चाक को
अपनी ज़ुल्फ़-ए-अम्बरीं को शाना जब करते हैं आप

हम ने पूछा फिर भी उस की जाँ फिरी सब जिस्म में
नज़’अ में दूरी से जिस को जाँ-ब-लब करते हैं आप

हँस के फ़रमाया ‘नज़ीर’ अपनी दुआ-ए-लुत्फ़ से
ये भी हो सकता है क्या इस का ओजब करते हैं आप

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Book by Nazeer Akbarabadi:

नज़ीर अकबराबादी
नज़ीर अकबराबादी (१७४०–१८३०) १८वीं शदी के भारतीय शायर थे जिन्हें "नज़्म का पिता" कहा जाता है। नज़ीर आम लोगों के कवि थे। उन्होंने आम जीवन, ऋतुओं, त्योहारों, फलों, सब्जियों आदि विषयों पर लिखा। वह धर्म-निरपेक्षता के ज्वलंत उदाहरण हैं। कहा जाता है कि उन्होंने लगभग दो लाख रचनायें लिखीं। परन्तु उनकी छह हज़ार के करीब रचनायें मिलती हैं और इन में से ६०० के करीब ग़ज़लें हैं। आप ने जिस अपनी तमाम उम्र आगरा में बिताई जो उस वक़्त अकबराबाद के नाम से जाना जाता था।