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हारुकी मुराकामी की कहानी ‘सातवाँ आदमी’
कहानी: 'सातवाँ आदमी'
लेखक: हारुकी मुराकामी
जापानी से अनुवाद: क्रिस्टोफ़र एलिशन
हिन्दी अनुवाद: श्रीविलास सिंह
"वह मेरी उम्र के दसवें वर्ष के दौरान सितम्बर का एक अपराह्न था...
घोष बाबू और उनकी माँ
"हम यहाँ से निकलकर कहाँ जाएँगे?" — शिल्पा ने अनिमेष के कंधे पर सिर रक्खे कहा।
"जहाँ क़िस्मत ले जाए!" — अनिमेष की आवाज़ में...
माँ का भूत
पुत्र बीमार हो या पति या फिर घर में कोई और। माँ का छोटा-सा पर्स खुले दिल से अपना मुँह खोलकर टेबल पर पसर...
फाँस
रात बहुत नहीं हुई थी, पर पूस की अँधियारी गाँव के ऊपर लटक आयी थी... निचली तह में जमे हुए धुएँ की नीली-नीली चादर।...
झाँकी
वे क्षण कितने कमज़ोर और साथ ही कितने शक्तिशाली होते हैं जिसमें हम उन लोगों को याद करके क्षमा कर देते हैं, जिनकी हमारे पास केवल कटु स्मृतियाँ होती हैं.. और इन क्षणों का सृजन कब हमारे आसपास की कोई भी वस्तु कर दे, कहना कठिन है। पढ़िए ऐसे ही एक क्षण को बाँधती प्रेमचंद की यह कहानी 'झाँकी'!