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मलय के नाम मुक्तिबोध का पत्र
राजनाँद गाँव
30 अक्टूबर
प्रिय मलयजी
आपका पत्र यथासमय मिल गया था। पत्रों द्वारा आपके काव्य का विवेचन करना सम्भव होते हुए भी मेरे लिए स्वाभाविक नहीं...
माँ ने जन्म दिया
मैं अदना-सा आदमी
मैंने पाया, इतना प्यार
मैंने माँ की कथरी ओढ़कर
ठण्ड के हिमालयों को
झींगुर या कीड़ों की तरह रेंगते देखा
सूपे की हवा ने उतार दिया
गर्मियों...
शामिल होता हूँ
मैं चाँद की तरह
रात के माथे पर
चिपका नहीं हूँ,
ज़मीन में दबा हुआ
गीला हूँ गरम हूँ
फटता हूँ अपने अंदर
अंकुर की उठती ललक को
महसूसता
देखने और रचने...