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काम, गंगाराम कुम्हार
काम
मेरे पास दो हाथ हैं—
दोनों काम के अभाव में
तन से चिपके निठल्ले लटके रहते हैं!
इस देश की स्त्रियों के पास इतने काम हैं—
भोर से...
चाक का चक्कर
'Chaak Ka Chakkar', a poem by Prita Arvind
चाक पर चक्कर में पड़ा
मिट्टी का नर्म गोला
सोच रहा है लगातार-
कितनी सम्भावनाएँ
ले रही हैं उसमें आकार।
चाय की...