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कविताएँ: दिसम्बर 2020
स्वाद
शहर की इन
अंधेरी झोपड़ियों में
पसरा हुआ है
मनो उदासियों का
फीकापन
दूसरी तरफ़
रंगीन रोशनियों से सराबोर
महलनुमा घरों में
उबकाइयाँ हैं
ख़ुशियों के
अतिरिक्त मीठेपन से
धरती घूमती तो है
मथनी की तरह...
बंटू / दो हज़ार पचानवे
उसने शायद खाना नहीं खाया था।
रोज़ तो सो जाता था
दुबक के
फैल के
रेल प्लेटफ़ॉर्म पे
बेंच के नीचे।
क्यों सता रहा है आज उसे
बारिश का शोर
गीली चड्ढी और...
अगर तस्वीर बदल जाए
सुनो, अगर मैं बन जाऊँ
तुम्हारी तरह प्रेम लुटाने की मशीन
मैं करने लगूँ तुमसे तुम्हारे ही जैसा प्यार
तुम्हारी तरह का स्पर्श जो आते-जाते मेरे गालों पे...