चैत ने करवट ली, रंगों के मेले के लिए
फूलों ने रेशम बटोरा—तू नहीं आया
दोपहरें लम्बी हो गईं, दाखों को लाली छू गई
दराँती ने गेहूँ की बालियाँ चूम लीं—तू नहीं आया
बादलों की दुनिया छा गई, धरती ने दोनों हाथ बढ़ाकर
आसमान की रहमत पी ली—तू नहीं आया
पेड़ों ने जादू कर दिया, जंगल से आयी हवा के
होंठों में शहद भर गया—तू नहीं आया
ऋतु ने एक टोना कर दिया, चाँद ने आकर
रात के माथे झूमर लटका दिया—तू नहीं आया
आज तारों ने फिर कहा, उम्र के महल में अब भी
हुस्न के दिये जल रहे हैं—तू नहीं आया
किरणों का झुरमुट कहता है, रातों की गहरी नींद से
रोशनी अब भी जागती है—तू नहीं आया!
अमृता प्रीतम की कहानी 'जंगली बूटी'