वो अक्सर मुझसे पूछती थी
तुम पहले क्यों नहीं मिले?
इस मझधार में जब मेरे अंदर का समस्त लावण्य
हीन हो चुका है
जब मेरी कोमलता को समय के प्रहार ने
अमुक साँचे में ढालकर मुझे बदल दिया है
जब मेरे पास तुम्हें देने को कुछ भी नहीं बचा
तब तुम मुझे क्यों मिले?
और मैं हँसकर उसकी हथेलियाँ थाम लेता था
उन अश्रुकणों को अपनी मुठ्ठियों में सहेज लेता
जिनसे झिलमिलाती आँखें
दुनिया की सबसे ख़ूबसूरत आँखें थीं।
मैं उसका पहला प्रेम नहीं था
शायद दूसरा भी नहीं
एक बार उसने कहा था
मुझसे मिलने से पहले तक उसे जो भी हुआ था
वो प्रेम नहीं था।
और मैं झुककर उसका माथा चूम लेता था
उस पर पड़ी सिलवटें सहलाकर पीछे धकेल देता था
उसके शान्त निर्मल चेहरे को अनिमेष देखता रहता था
उसके गाल पर एक छोटा-सा काला निशान था
जिसने अब तक उसे मेरी बुरी नज़र से बचाये रखा था।
हमारी तकरार बढ़ने पर वो रो देती थी
कहती थी मुझे खोने से बहुत डरती है
और मैं उसके बेवजह के डर को अनदेखा कर
मुस्कुरा देता था।
तब मुझे नहीं पता था
हम जिस चीज़ से कभी नहीं डरते
वही हादसा हमारे जीवन में घटित हो जाता है।
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