मैं कोशिश कर रहा हूँ
फिर भी नहीं लौट पाया अगर
कोई बात नहीं
मेरी यादें लौटती रहेंगी तुम तक
तुम्हें छूती रहेंगी
तुम्हारे कानों में फुसफुसाकर कहेंगी कुछ
ज़्यादा ध्यान मत देना तुम
झटक देना उन यादों को जो तुम्हें परेशान करें

मैं जानता हूँ
जिए हुए को टालना बहुत मुश्किल होता है
यादें चुम्बक-सी होती हैं
लेकिन तुम आगे बढ़ना
ढोना मत मुझे शव की तरह
चुन लेना कोई साथी
अपनी पसंद का
और जीना इस तरह कि तुम्हारे जीने से दूसरों को बल मिले

हम सभी अपने-अपने समय से कुछ श्रेष्ठ चाहते हैं
श्रेष्ठ की खोज में भटकते हैं
लेकिन मनुष्य जीवन से श्रेष्ठ कुछ भी नहीं है
सफलता एक खोल है
जिसे ओढ़ने के बाद कोई भी आकर्षक दिख सकता है
लेकिन ज़रूरी नहीं है कि उसमें अर्थ की गम्भीरता भी हो

परिभाषाओं में कभी मत फँसना तुम
परिभाषाएँ हमारे अर्थबोध को सीमित कर देती हैं
परिभाषाएँ गढ़ने वाले लोगों से सतर्क रहना
ऐसे लोग जीवन की व्यापकता को नहीं,
समाज की प्रचलित मान्यताओं को मानते हैं

मैंने तुम्हें जब भी देखा
जब भी सुना
जब भी छुआ
मेरी आस्था मुझमें लौटती रही
तुम्हारा विश्वास तुम में बना रहे
अलविदा।

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गौरव भारती
जन्म- बेगूसराय, बिहार | संप्रति- असिस्टेंट प्रोफेसर, हिंदी विभाग, मुंशी सिंह महाविद्यालय, मोतिहारी, बिहार। इन्द्रप्रस्थ भारती, मुक्तांचल, कविता बिहान, वागर्थ, परिकथा, आजकल, नया ज्ञानोदय, सदानीरा,समहुत, विभोम स्वर, कथानक आदि पत्रिकाओं में कविताएँ प्रकाशित | ईमेल- [email protected] संपर्क- 9015326408