किसी रोज़

किसी रोज़
हाँ, किसी रोज़
मैं वापस आऊँगा ज़रूर
अपने मौसम के साथ

तुम देखना
मुझ पर खिले होंगे फूल
उगी होंगी हरी पत्तियाँ
लदे होंगे फल

मैं सीखकर आऊँगा
चिड़ियों की भाषा
माँगकर आऊँगा तितलियों से थोड़ा रंग
ओढ़कर आऊँगा समूचा आकाश

तुम देखना
मैं भी महकूँगा किसी रोज़ फूलों की तरह
बस बचा रह जाऊँ किसी तरह
और बीत जाए यह ख़राब मौसम…

मैं अक्सर व्याकरण से बाहर चला जाता हूँ

ओ मेरे सुधीजनों
तुम्हारी सभा में
अगर मैं चीख़ पड़ूँ अचानक
तो मुझे माफ़ करना
अनुपस्थित समझना मुझे

मैं हँस नहीं पाता
भद्दे मज़ाक़ों पर
कई बार
मुझे अपनी उपस्थिति पर भी रोना आता है

बहुत जतन के बाद भी
मैं नहीं सीख पाया हूँ
पेश आने का अदब
इल्म नहीं है मुझमें
मैं अक्सर व्याकरण से बाहर चला जाता हूँ…

मैं ख़ुशक़िस्मत हूँ कि मेरी ज़ुबान अभी तक काटी नहीं गई है

भटक रहा हूँ आजकल
न जाने कहाँ

कभी ख़ुद से भागता हूँ
कभी बेवजह के शोर से
कभी अपने कमरे से
कभी अपने सपनों से

चाय की दुकान पर बैठता हूँ
तो घंटों बैठा रहता हूँ वहीं
नितांत अकेला
और देखता रहता हूँ
दौड़ती-भागती गाड़ियाँ
लोगों की तर्कहीन बातें
कानों पर जबरन धावा बोलने की कोशिश में लगी रहती हैं
उन्हें उड़ाते रहता हूँ
जैसे कोई उड़ाता है
देह के आसपास भिनक रही मक्खियाँ

ज़िन्दा बचे रहने की कई शर्तें हैं
उनमें से एक अनिवार्य शर्त यह है कि
अपनी राय को अपनी जेब में रखा जाए
लेकिन मेरी फटी हुई जेबों से
मेरी राय गिर ही जाती हैं
बहुत मुश्किल है मेरे लिए
ज़िंदा बचे रह पाने की इस शर्त को पूरा कर पाना
मैं ख़ुशक़िस्मत हूँ कि मेरी ज़ुबान अभी तक काटी नहीं गई है…

असम्प्रेषित प्रेम-पत्र के एवज़ में

मैंने कभी नहीं सोचा था
कि कुछ लिखूँगा
क्योंकि पूर्वजों में दूर-दूर तक किसी ने भाषा को इस रूप में नहीं बरता

मेरी पहली कविता
मेरा पहला प्रेम-पत्र था
जिसे फ़िजिक्स की कॉपी में छुपाकर मैंने लौटायी थी उसे
जिससे मैं प्रेम करता था

मेरे शब्द उसे उसी तरह समझ नहीं आए
जैसे मुझे कभी समझ नहीं आया
सापेक्षता का सिद्धांत

मुझे लगा
मुझे अनुभव की ज़रूरत है
मैंने लोगों को पढ़ा
लोगों को सुना
जीया थोड़ा-बहुत
और आज उन्हीं थोड़े-बहुत अनुभवों के साथ
मैं कह सकता हूँ कि
कविता लिखना जितना आसान है
उससे कहीं ज़्यादा मुश्किल है
एक प्रेम-पत्र लिखना

मैं जब भी लिखने की सोचता हूँ
या कोई ख़याल मन में आता है
मैं याद करता हूँ
अपना पहला प्रेम-पत्र
जिसके शब्द अर्थ पर भारी रहें होंगे

प्रेम शब्द नहीं, अर्थ खोजता है
एक प्रेमी को शब्द नहीं
ढूँढना चाहिए अर्थ
अर्थ हो सकता है
पेशानी पर दिया गया एक चुम्बन
किसी की याद में आँखों से बही कुछ बूँदें
या फिर अपने साथी की नाराज़गी, खीझ, और ग़ुस्से के सामने
एक छोटे-से अंतराल का मौन

असम्प्रेषित प्रेम-पत्र के एवज़ में
मैं लिख रहा हूँ लगातार
प्रेम कविताएँ
ताकि देह छोड़ने से पहले
प्रेम को विन्यस्त कर सकूँ अपने जीवन में
और शब्दोंं से परे
नाम से परे
पा सकूँ एक अर्थ
जिसकी ऊष्मा पीढ़ियों तक बनी रहे।

गौरव भारती की कविता 'मैं ख़ुद को हत्यारा होने से बचा रहा हूँ'

Recommended Book:

गौरव भारती
जन्म- बेगूसराय, बिहार | संप्रति- असिस्टेंट प्रोफेसर, हिंदी विभाग, मुंशी सिंह महाविद्यालय, मोतिहारी, बिहार। इन्द्रप्रस्थ भारती, मुक्तांचल, कविता बिहान, वागर्थ, परिकथा, आजकल, नया ज्ञानोदय, सदानीरा,समहुत, विभोम स्वर, कथानक आदि पत्रिकाओं में कविताएँ प्रकाशित | ईमेल- [email protected] संपर्क- 9015326408