Read here the best Hindi Love Poems and Stories
Tag: प्रेम
आख़िरी बार मिलो
आख़िरी बार मिलो ऐसे कि जलते हुए दिल
राख हो जाएँ कोई और तक़ाज़ा न करें
चाक-ए-वादा न सिले, ज़ख़्म-ए-तमन्ना न खिले
साँस हमवार रहे, शमा की लौ...
तुम्हारे कंधे से उगेगा सूरज
तुम्हारी आँखें
मखमल में लपेटकर रखे गए
शालिग्राम की मूरत हैं
और मेरी दृष्टि
शोरूम के बाहर खड़े
खिलौना निहारते
किसी ग़रीब बच्चे की मजबूरी
मैंने जब-जब तुम्हें देखा
ईश्वर अपने अन्याय...
प्रेम व्यापार
किसी दिन तुमने कह दिया कि दिखाओ नदी
असल और सच्ची। तो मैं क्या करूँगा?
आज तो यह कर सकता हूँ—घर के सीले कोने में जाकर...
ओछा है मेरा प्यार
कितना अकेला कर देगा मेरा प्यार
तुमको एक दिन
अकेला और सन्तप्त
अपनी समूची देह से मुझे सोचती हुईं
तुम जब मुस्कुराओगी—औपचारिक!
प्यार मैं तुम्हें तब भी करता रहूँगा
शायद...
‘चलो’—कहो एक बार
'चलो'
कहो एक बार
अभी ही चलूँगी मैं—
एक बार कहो!
सुना तब 'हज़ार बार चलो'
सुना—
आँखें नम हुईं
और
माथा उठ आया।
बालू ही बालू में
खुले पैर, बंधे हाथ
चांदी की जाली...
बंजारा
मैं बंजारा
वक़्त के कितने शहरों से गुज़रा हूँ
लेकिन
वक़्त के इस इक शहर से जाते-जाते मुड़ के देख रहा हूँ
सोच रहा हूँ
तुमसे मेरा ये नाता...
अलग-साथ समय
उसका समय
मेरे समय से अलग है—
जैसे उसका बचपन, उसकी गुड़ियाँ-चिड़ियाँ
यौवन आने की उसकी पहली सलज्ज पहचान अलग है।
उसकी आयु
उसके एकान्त में उसका प्रस्फुटन,
उसकी इच्छाओं...
प्रेम करना गुनाह नहीं है
हम सामाजिक परम्पराओं से निर्वासित हुए लोग थे
हमारे सर पर आवारा और उद्दण्ड का ठीकरा लदा था
हम ने किसी का नुक़सान नहीं किया था
न ही नशे में गालियाँ...
नाज़िम हिकमत : रात 9 से 10 के बीच की कविताएँ
अनुवाद: मनोज पटेल (पढ़ते-पढ़ते से साभार)
(पत्नी पिराए के लिए)
21 सितम्बर 1945
हमारा बच्चा बीमार है।
उसके पिता जेल में हैं।
तुम्हारे थके हाथों में तुम्हारा सर बहुत...
मन के पास रहो
तन की दूरी क्या कर लेगी
मन के पास रहो तुम मेरे
देख रहा हूँ मैं धरती से
दूर बहुत है चाँद बिचारा
किन्तु कहा करता है मन...
मुझसे पहले
मुझसे पहले तुझे जिस शख़्स ने चाहा, उसने
शायद अब भी तेरा ग़म दिल से लगा रक्खा हो
एक बेनाम-सी उम्मीद पे अब भी शायद
अपने ख़्वाबों के...
अलविदा
मैं कोशिश कर रहा हूँ
फिर भी नहीं लौट पाया अगर
कोई बात नहीं
मेरी यादें लौटती रहेंगी तुम तक
तुम्हें छूती रहेंगी
तुम्हारे कानों में फुसफुसाकर कहेंगी कुछ
ज़्यादा...