Read here the best Hindi Love Poems and Stories
Tag: प्रेम
शिवम तोमर की कविताएँ: मार्च 2022
कुछ संगीतों के लिए वर्तमान वैक्यूम होता है
एक तरह का संगीत था
मैंने सुना था फ़िल्मों में
ख़ास क्षणों में बजता था
जब भी बजता
सब धीमा-सा हो...
प्रेम की ड्योढ़ी का सन्तरी
'माया ने घुमायो' उन कहानियों की आधुनिक प्रस्तुति है जो हमें वाचिक परम्परा से मिली हैं। ये कहानियाँ अपनी कल्पनाओं, अतिरंजनाओं और अपने पात्रों...
कविताएँ: फ़रवरी 2022
अच्छी दुनिया
रहे हैं अच्छी दुनिया के मायने हमेशा से—
खिले फूल और तितलियाँ,
उड़ती चिड़ियाँ और हरे पेड़।
हँसते-खिलखिलाते बच्चे और उनके खेल,
प्रेम में डूबे हृदय और...
‘अन्तस की खुरचन’ से कविताएँ
यतीश कुमार की कविताओं को मैंने पढ़ा। अच्छी रचना से मुझे सार्वजनिकता मिलती है। मैं कुछ और सार्वजनिक हुआ, कुछ और बाहर हुआ, कुछ...
‘खोई चीज़ों का शोक’ से कविताएँ
सविता सिंह का नया कविता संग्रह 'खोई चीज़ों का शोक' सघन भावनात्मक आवेश से युक्त कविताओं की एक शृंखला है जो अत्यन्त निजी होते...
जीवन सपना था, प्रेम का मौन
जीवन सपना था
आँखें सपनों में रहीं
और सपने झाँकते रहे आँखों की कोर से
यूँ रची हमने अपनी दुनिया
जैसे बचपन की याद की गईं कविताएँ
हमारा दुहराया...
कविताएँ: नवम्बर 2021
यात्री
भ्रम कितना ख़ूबसूरत हो सकता है?
इसका एक ही जवाब है मेरे पास
कि तुम्हारे होने के भ्रम ने
मुझे ज़िन्दा रखातुम्हारे होने के भ्रम में
मैंने शहर...
आशिका शिवांगी सिंह की कविताएँ
माँ-पिता प्रेमी-प्रेमिका नहीं बन सके
मेरी माँ जब भी कहती है—
"प्रेम विवाह ज़्यादा दिन नहीं चलते, टूट जाते हैं"
तब अकस्मात ही मुझे याद आने लगते...
अहमद नियाज़ रज़्ज़ाक़ी की नज़्में
अब
अब कहाँ है ज़बान की क़ीमत
हर नज़र पुर-फ़रेब लगती है
हर ज़ेहन शातिराना चाल चले
धड़कनें झूठ बोलने पे तुलीं
हाथ उठते हैं बेगुनाहों पर
पाँव अब रौंदते...
अनुत्तरित प्रार्थना
'परिवर्तन प्रकृति का नियम है'
यह पढ़ते-पढ़ाते वक़्त
मैंने पूरी शिद्दत के साथ अपने रिश्तों में की
स्थिरता की कामनाप्रकृति हर असहज कार्य भी पूरी सहजता के...
कविताएँ: सितम्बर 2021
हादसा
मेरे साथ
प्रेम कम
उसकी स्मृतियाँ ज़्यादा रहींप्रेम
जिसका अन्त
मुझ पर एक हादसे की तरह बीता
मुझे उस हादसे पर भी प्रेम आता है।
गंध
मैं तुम्हें याद करता हूँ
दुनिया...
एक दिन करेंगे बात केवल प्यार की
एक दिन करेंगे बात केवल प्यार की!तुम कहोगे—रुको
तो मैं नहीं दिलाऊँगी याद
कि आठ बज गये हैं
चाँद चढ़ गया है
लौट जाओ घर तुम
कि तुम्हारे होने...