क्या याद आता होगा मृत्यु के प्रारम्भ में
मर्मान्तक वेदना की लम्बी मौत
या कृतज्ञ बेहोशी में या उससे कुछ पहले—
एक बहुत नन्ही लड़की अँगुलियाँ पकड़ती हुई
या पास आती हुई दो दमकती आँखें
या बचपन और पुराना घर और धूप-भरी सुबहें और रेलगाड़ी
या बहुत सूनी गर्मियों की उदास दुपहर अथवा
उससे भी बोझिल शाम के एक-दो पेड़ वाले रास्ते
या चीज़ें जो की नहीं गईं या एक घर जो कभी नहीं बना
या दुःख जो दिए गए
या सुख जिन्हें छुआ नहीं गया
और इन सबके होने और न होने की व्यर्थता
यह सब याद आता होगा और एक पक्षी का उड़ना भी
किसी एक अनाम फूल का हवा में हिलना और
मौसमों की सन्धि-वेला की गन्ध का स्पर्श और सूर्योदय और सूर्यास्त
और अँधियारे आकार और रहस्यमय रात्रि
और यह करुण एहसास
कि यह सब अन्तिम है—एक पूरे होते हुए जीवन को
बचे हुए कुछ भयार्द्र क्षणों की
डूबती हुई स्मृति में जीना।
विष्णु खरे की कविता 'अकेला आदमी'