देखो लड़को, बंदर आया,
एक मदारी उसको लाया।
उसका है कुछ ढंग निराला,
कानों में पहने है बाला।

फटे-पुराने रंग-बिरंगे
कपड़े हैं उसके बेढंगे।
मुँह डरावना आँखें छोटी,
लंबी दुम थोड़ी-सी मोटी।

भौंह कभी है वह मटकाता,
आँखों को है कभी नचाता।
ऐसा कभी किलकिलाता है,
मानो अभी काट खाता है।

दाँतों को है कभी दिखाता,
कूद-फाँद है कभी मचाता।
कभी घुड़कता है मुँह बा कर,
सब लोगों को बहुत डराकर।

कभी छड़ी लेकर है चलता,
है वह यों ही कभी मचलता।
है सलाम को हाथ उठाता,
पेट लेटकर है दिखलाता।

ठुमक ठुमककर कभी नाचता,
कभी कभी है टके जाँचता।
देखो बंदर सिखलाने से,
कहने सुनने समझाने से-

बातें बहुत सीख जाता है,
कई काम कर दिखलाता है।
बनो आदमी तुम पढ़-लिखकर,
नहीं एक तुम भी हो बंदर।

अयोध्या सिंह उपाध्याय ‘हरिऔध’
अयोध्यासिंह उपाध्याय 'हरिऔध' (15 अप्रैल, 1865-16 मार्च, 1947) हिन्दी के एक सुप्रसिद्ध साहित्यकार थे। वे दो बार हिंदी साहित्य सम्मेलन के सभापति रह चुके हैं और सम्मेलन द्वारा विद्यावाचस्पति की उपाधि से सम्मानित किये जा चुके हैं। 'प्रिय प्रवास' हरिऔध जी का सबसे प्रसिद्ध और महत्वपूर्ण ग्रंथ है। यह हिंदी खड़ी बोली का प्रथम महाकाव्य है और इसे मंगला प्रसाद पारितोषित पुरस्कार प्राप्त हो चुका है।