कौन बचा है जिसके आगे
इन हाथों को नहीं पसारा

यह अनाज जो बदल रक्त में
टहल रहा है तन के कोने-कोने
यह कमीज़ जो ढाल बनी है
बारिश सर्दी लू में
सब उधार का, माँगा चाहा
नमक-तेल, हींग-हल्दी तक
सब क़र्ज़े का
यह शरीर भी उनका बंधक

अपना क्या है इस जीवन में
सब तो लिया उधार,
सारा लोहा उन लोगों का
अपनी केवल धार।

अरुण कमल की कविता 'सबसे ज़रूरी सवाल'

Book by Arun Kamal:

अरुण कमल
अरुण कमल (जन्म-15 फरवरी, 1954) आधुनिक हिन्दी साहित्य में समकालीन दौर के प्रगतिशील विचारधारा संपन्न, सहज शैली के प्रख्यात कवि हैं। साहित्य अकादमी पुरस्कार प्राप्त इस कवि ने कविता के अतिरिक्त आलोचना भी लिखी हैं, अनुवाद कार्य भी किये हैं तथा लंबे समय तक सुप्रसिद्ध साहित्यिक पत्रिका आलोचना का संपादन भी किया है।