अचानक ही चल बसी
हमारी गली की कुबड़ी बुढ़िया,
अभी तो कल ही बात हुई थी
जब वह कोयला तोड़ रही थी
आज सुबह भी मैंने उसको
नल पर पानी भरते देखा
दिन भर कपड़ा फींचा, घर को धोया
मालिक के घर गई और बर्तन भी माँजा
मलकीनी को तेल लगाया
मालिक ने डाँटा भी शायद
घर आई फिर चूल्हा जोड़ा
और पतोहू से भी झगड़ी
बेटे से भी कहा-सुनी की
और अचानक बैठे-बैठे साँस रुक गई।

अभी तो चल सकती थी कुछ दिन बड़े मज़े से
ओह बेचारी कुबड़ी बुढ़िया!

अरुण कमल
अरुण कमल (जन्म-15 फरवरी, 1954) आधुनिक हिन्दी साहित्य में समकालीन दौर के प्रगतिशील विचारधारा संपन्न, सहज शैली के प्रख्यात कवि हैं। साहित्य अकादमी पुरस्कार प्राप्त इस कवि ने कविता के अतिरिक्त आलोचना भी लिखी हैं, अनुवाद कार्य भी किये हैं तथा लंबे समय तक सुप्रसिद्ध साहित्यिक पत्रिका आलोचना का संपादन भी किया है।