एक इंजीनियर होकर लेखक / कवि होना होना कठिन है। आप साहित्य नहीं जानते (क्योंकि, निश्चित रूप से आपने इंजीनियरिंग को चुना था), आप कुछ लेखकों की किताबें नहीं पढ़ सकते हैं (क्योंकि श्रोडिंगर की तरंग समीकरण आपके सेमेस्टर में ज्यादा महत्व रखता है) और यही आपके लेखन को उस जादुई तत्व से जुदा करती है चाहे वह शब्द हो, शैली हो या कविता हो। यह कठिन है क्योंकि आपके पास मंच नहीं है, आपके पास दर्शक नहीं है और आपके आस-पास वे लोग नहीं हैं जो आपकी कविता, आपके काम को समझते हैं। आपको सुझाव देने के लिए आपके आसपास कोई नहीं है। आप विभिन्न लेखन ऐप्स, वेबसाइटों के माध्यम से खोज करते रहते हैं। ओपन माइक वेन्यू के लिए आपकी खोज भले ही आपको वहां जाने से डरती हो क्योंकि आपको विश्वास नहीं होता कि आपकी कविता में कुछ जादू है। आपका ब्राउज़र कुकी एक अलग कहानी बताता है, तुकबंदी वाली वेबसाइटों को दिखाते हुए, अपने शब्दों को सजाने के लिए और अधिक सुंदर शब्दों की खोज करता है और जब आप अंततः अपने काम को पोस्ट करने के लिए आत्मविश्वास प्राप्त करते हैं, और उसे किसी सोशल मीडिया पर पोस्ट करते हैं तो इसकी विफलता आपको झकझोर देती है और इसमें एक बार की विफलता नहीं होती, बल्कि लगातार मिल रही विफलता आपको विचलित ज़रूर करती है ।लोग परवाह नहीं करते हैं कि आपने क्या लिखा है, वे जानना चाहते हैं कि आपके जीवन में ऐसा क्या घटित हुआ जिसे आपने लिखा और इस बात की जिज्ञासा कुछ अत्यधिक ही होती है कि किसके लिए आपने तथाकथित रोमांटिक लाइन लिखी है।
क्या उन गिने-चुने लोगों के साथ रहना मुश्किल नहीं है जो आपके कार्य / लेखन के प्रति प्रतिक्रिया व्यक्त करते हैं। आपके द्वारा प्राप्त की गई प्रशंसा कुछ से बहुत ज़्यादा कम है। इस सदी की सबसे बड़ी कहावत है “चार लोग क्या कहते हैं” और आपको केवल चार लोग मिले जो कुछ कहते हैं या अपने विचार आपकी लेखनी कार्य पर करते हैं चाहे वो अपनत्व में कहते हों (यह एक बहुत बड़ा पहलू है) या फिर सच में आपका कार्य उन्हें अच्छा लगता हो(ईश्वर ही जानता है)।
आपने सोचा था कि जब आप लिखना शुरू करेंगे तो आप आग की तरह फैल जाएंगे, इंकलाब ला देंगे, आपको लगा कि आप अगले जाकिर खान बनेंगे(क्यूंकि आप अपने बैच में सर्वश्रेष्ठ कॉमेडियन थे और आप लिखते हैं)। लेकिन क्या यह सोच आप पर उल्टी नहीं पड़ी? यह सोच आपको और असफलताओं की तरफ नहीं ले गई? गैर साहित्यिक समाज में होने के कारण लोगों ने आपके काम को समझने में कोई रुचि दिखाई ही नहीं कभी(क्यूंकि यहाँ तो बस हर कोई यही जानता है कि कैसे हैक करना है, भवन निर्माण कैसे करना है और कैसे मरम्मत करना है), ऊपर से आपकी ऐसी छवि हैं जो यह विश्वास करना कठिन बनाती हैं कि आप इतने गंभीर कैसे हो सकते हैं(क्यूंकि कभी अपने किसी की गंभीर बातों को ठिठोली में उड़ाया था)। एक और विफलता क्योंकि किसी के पास आपको सुनने का समय नहीं था ना ही समझ थी।
आप पूर्णकालिक कवि बनने के सपने का पीछा नहीं कर सकते क्योंकि आपके पिताजी चाहते हैं कि आप एक अच्छी नौकरी कर लें, और वह आपको संघर्ष नहीं करता भी नहीं देख सकते (और आप भी संघर्ष नहीं करना चाहते हैं क्यूंकि ज़िन्दगी के किसी मोड़ पर आप अपने पिताजी को दुःखी नहीं करना चाहते क्योंकि अपने उनके अपने प्रति बलिदानों को देखा है)। आप अभी भी लोगों को देखते हैं कविता लिखते हुए, उसका मंचन करते हुए और तालियां पाते हुए, जो कभी हम पाना चाहते थे, जिस मंच पर कभी हम भी जाना चाहते थे और फिर भी कम आत्मविश्वास के कारण वहां नहीं जा सकते हैं (और आपका साहित्य आज भी उतना ही खराब है)
अंशकालिक, संघर्षशील, बुरे कवि और लेखक होने की तुलना में पूर्णकालिक इंजीनियर बनना बेहतर है। क्योंकि परियों की कहानी हर किसी के जीवन में मौजूद नहीं है और इस बात से परहेज़ भी नहीं है की बिना संघर्ष के लड़ाई छोड़ता नज़र आ रहे हो तुम।पर मलाल नहीं रखना है क्यूंकि नभ में इतने तारों में से लोग बस सप्तऋषि और ध्रुव तारे को ही पहचान मिलती है, बाकी तारे तो सुबह होते ही सो जाते हैं और शाम होते ही फिर से भीड़ बना के बैठ जाते हैं। तुम वही तारे हो जो पहचान नहीं बना पाया चाहे उसका कारण कुछ भी हो| और अतिशयोक्ति कविताओं में इतना भर देते हो कि यहां अतिशयोक्ति की भरपूर कमी हो चुकी है||
पी। एस .: उपर्युक्त पंक्तियों में ‘तुम’ का संबोधन किसी और को नहीं बल्कि मुझे है, केवल मुझे।