मेरी नींद के दौरान
कुछ इंच बढ़ गए पेड़
कुछ सूत पौधे
अंकुर ने अपने नाम-मात्र, कोमल सींगों से
धकेलना शुरू की
बीज की फूली हुई
छत, भीतर से।
एक मक्खी का जीवन-क्रम पूरा हुआ
कई शिशु पैदा हुए, और उनमें से
कई तो मारे भी गए
दंगे, आगज़नी और बमबारी में।
ग़रीब बस्तियों में भी
धमाके से हुआ देवी जागरण
लाउडस्पीकर पर।
याने साधन तो सभी जुटा लिए हैं अत्याचारियों ने
मगर जीवन हठीला फिर भी
बढ़ता ही जाता आगे
हमारी नींद के बावजूद
और लोग भी हैं, कई लोग हैं
अब भी
जो भूले नहीं करना
साफ़ और मज़बूत
इंकार।
वीरेन डंगवाल की कविता 'कैसी ज़िन्दगी जिए'