हमारे छत्तीस में से बत्तीस गुण मिलते हैं
जब साथ खड़े होते हैं
तो जैसे राम और सीता
लेकिन हम बात नहीं करते
क्योंकि हमारे पास करने के लिए कोई बात नहीं है

हम जन्म-जन्मांतर के साथी
हम एक ही छत के नीचे
एक ही कमरे में
एक साथ ज़रूर रहते हैं
लेकिन अकेले-अकेले

एक आदर्श युगल की भूमिका में भी
हम इतने अजनबी हैं
कि जब साथ डिनर करने के लिए बाहर जाते हैं
तो जो बात
सबसे ज़्यादा परेशान करती है
वह यह
कि खाना आने तक का समय कैसे कटेगा…

हम सन्नाटों में डूबते जा रहे हैं

एक ही बिस्तर पर
कुछ सेंटीमीटर की दूरी पर लेटे
हम दो लोगों के मध्य
अनेक प्रकाशवर्षों की दूरी है

हम एक-दूसरे के गुरुत्वाकर्षण
के दायरे से बाहर जा चुके हैं

हम एक-दूसरे की
अपेक्षाओं, इच्छाओं और मानदंड पर खरे नहीं उतरते
लेकिन हमारी ईमानदारी
और ज़िम्मेदारी
हमें आपस में जोड़े रखती है

हम दोनों ही सही हैं
जो ग़लत इंसान के साथ रह रहे हैं

हर रोज़
हमारे भीतर
कुछ टूटता जाता है

हम पृथ्वी के दो विपरीत ध्रुवों पर
खड़े होकर
ख़ुद को हौले-हौले
गलता हुआ देख रहे हैं

हमें एक-दूसरे की
सारी ज़रूरतों,
सारी समस्याओं
का हल होना था
जिसकी अब कहीं कोई उम्मीद शेष नहीं है…!

इन दिनों हम अक्सर यह सवाल दुहराते हैं
जिनका कोई हल नहीं होता,
क्या वे चीज़ें ख़त्म हो जाती हैं…?*

*निर्मल वर्मा के उपन्यास ‘एक चिथड़ा सुख’ की एक पंक्ति
अमृता प्रीतम की कहानी 'यह कहानी नहीं'

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