अगर तुम समझते हो
कि तुमने सब कुछ जान लिया है
तो यह तुम्हारा भ्रम है
उम्र अनुभव देती है, पड़ताल नहीं
अभी तुमने जाना नहीं है
चीज़ों को सही करना
और गाँठों को खोलना
रोशनी में नहाया हुआ चन्द्रमा
दरवाज़े पर दस्तक देता है
और तुम्हारे कान उसे नहीं सुनते
जीवन से दूर इसकी परछाइयाँ उतरती हैं
नदी अपनी गहराई में गुम होती जाती है
प्यार बीत जाता है ऋतुओं की तरह
तुम्हें गुमान है कि सब ठीक है
तुमने बदले नहीं हैं अपने रास्ते
जीवन की पटरी सीधी चल रही है
सारे साज़ो-सामान इकट्ठे हैं
खाते-पीते-सोते महफ़ूज़ हैं हम
पता नहीं तुमने क्या सीखा है
विचारों का एक पुलिंदा
जिसकी बोरियाँ तुमने भर रखी हैं
लगातार बोलते-बोलते सूख जाता है गला
दूसरे पर हावी होने की कोशिश
तुम्हें लगातार कमज़ोर करती है
अभिमान और विवशता को छाती से लगाए
एक दिन आ जाता है कूच करने का समय!
अनीता वर्मा की कविता 'स्त्री का चेहरा'