कवि लोग बहुत लम्बी उमर जीते हैं
मारे जा रहे होते हैं
फिर भी जीते हैं

कृतघ्न समय में मूर्खों और लम्पटों के साथ
निभाते अपनी दोस्ती
उनके हाथों में ठूँसते अपनी किताब
कवि लोग बहुत दिनों तक हँसते हैं
चीख़ते हैं और चुप रहते हैं
लेकिन मरते नहीं हैं कमबख़्त!

कवि लोग बच्चों में चिड़ियाँ
और चिड़ियों में लड़कियाँ
और लड़कियों में फूल देखते हैं
सब देखे हुए के बीज समेटते हैं
फिर ख़ुद को उन बीजों के साथ बोते हैं

कवि लोग बीजों की तरह छिपकर
नए रूप में लौट आते हैं

फ़िलहाल उनकी नस्ल को कोई ख़तरा नहीं है!

ऋतुराज की कविता 'माँ का दुःख'

Book by Rituraj:

ऋतुराज
कवि ऋतुराज का जन्म राजस्थान में भरतपुर जनपद में सन 1940 में हुआ। उन्होंने राजस्थान विश्वविद्यालय जयपुर से अंग्रेजी में एम. ए. की उपाधि ग्रहण की। उन्होंने लगभग चालीस वर्षों तक अंग्रेजी-अध्ययन किया। ऋतुराज के अब तक के प्रकाशित काव्य संग्रहों में 'पुल पानी मे', 'एक मरणधर्मा और अन्य', 'सूरत निरत' तथा 'लीला अरविंद' प्रमुख है।