किसी से इश़्क करना चाहिए था
मुझे हद से गुज़रना चाहिए था

वो आँखों में उतरकर रह गया है
जिसे दिल में उतरना चाहिए था

मुहब्बत पाके भी तुम ख़ुश नहीं हो
तुम्हें तो डूब मरना चाहिए था

ये क्या पहली दफ़ा में भर ली हामी
ज़रा-सा तो मुकरना चाहिए था

हमें तन्हाई रास आने लगी है
तुम्हारा साथ वरना चाहिए था

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विजय राही
विजय राही युवा कवि हैं। हिन्दी के साथ उर्दू और राजस्थानी में समानांतर लेखन। हंस, मधुमती, पाखी, तद्भव, वर्तमान साहित्य, कृति बहुमत, सदानीरा, अलख, कथेसर, विश्व गाथा, रेख़्ता, हिन्दवी, कविता कोश, पहली बार, इन्द्रधनुष, अथाई, उर्दू प्वाइंट, पोषम पा,दैनिक भास्कर, राजस्थान पत्रिका, डेली न्यूज, राष्ट्रदूत आदि पत्र-पत्रिकाओं, ब्लॉग और वेबसाइट्स पर कविताएँ - ग़ज़लें प्रकाशित। सम्मान- दैनिक भास्कर युवा प्रतिभा खोज प्रोत्साहन पुरस्कार-2018, क़लमकार द्वितीय राष्ट्रीय पुरस्कार (कविता श्रेणी)-2019 संप्रति - राजकीय महाविद्यालय, कानोता, जयपुर में असिस्टेंट प्रोफेसर के पद पर कार्यरत