कुछ लाग कुछ लगाव मोहब्बत में चाहिए
दोनों तरह का रंग तबीअत में चाहिए

ये क्या कि बुत बने हुए बैठे हो बज़्म में
कुछ बे-तकल्लुफ़ी भी तो ख़ल्वत में चाहिए

वो इब्तिदा-ए-इश्क़ में हासिल हुई मुझे
जो बात इंतिहा-ए-मोहब्बत में चाहिए

आएँगे बे-शुमार फ़रिश्ते अज़ाब के
मैदान-ए-हश्र ग़ैर की तुर्बत में चाहिए

कुछ तो पड़े दबाव दिल-ए-बे-क़रार पर
पारा भरा हुआ मिरी तुर्बत में चाहिए

माशूक़ के कहे का बुरा मानते हो ‘दाग़’
बर्दाश्त आदमी की तबीअत में चाहिए

दाग़ देहलवी
नवाब मिर्जा खाँ 'दाग़', उर्दू के प्रसिद्ध कवि थे। इनका जन्म सन् 1831 में दिल्ली में हुआ। गुलजारे-दाग़, आफ्ताबे-दाग़, माहताबे-दाग़ तथा यादगारे-दाग़ इनके चार दीवान हैं, जो सभी प्रकाशित हो चुके हैं। 'फरियादे-दाग़', इनकी एक मसनवी (खंडकाव्य) है। इनकी शैली सरलता और सुगमता के कारण विशेष लोकप्रिय हुई। भाषा की स्वच्छता तथा प्रसाद गुण होने से इनकी कविता अधिक प्रचलित हुई पर इसका एक कारण यह भी है कि इनकी कविता कुछ सुरुचिपूर्ण भी है।