मत कहो, आकाश में कुहरा घना है,
यह किसी की व्यक्तिगत आलोचना है।

सूर्य हमने भी नहीं देखा सुबह से,
क्या करोगे, सूर्य का क्या देखना है।

इस सड़क पर इस क़दर कीचड़ बिछी है,
हर किसी का पाँव घुटनों तक सना है।

पक्ष औ’ प्रतिपक्ष संसद में मुखर हैं,
बात इतनी है कि कोई पुल बना है।

रक्त वर्षों से नसों में खौलता है,
आप कहते हैं क्षणिक उत्तेजना है।

हो गई हर घाट पर पूरी व्यवस्था,
शौक़ से डूबे जिसे भी डूबना है।

दोस्तो! अब मंच पर सुविधा नहीं है,
आजकल नेपथ्य में सम्भावना है।

दुष्यन्त कुमार की कविता 'ईश्वर को सूली'

Book by Dushyant Kumar:

दुष्यन्त कुमार
दुष्यंत कुमार त्यागी (१९३३-१९७५) एक हिन्दी कवि और ग़ज़लकार थे। जिस समय दुष्यंत कुमार ने साहित्य की दुनिया में अपने कदम रखे उस समय भोपाल के दो प्रगतिशील शायरों ताज भोपाली तथा क़ैफ़ भोपाली का ग़ज़लों की दुनिया पर राज था। हिन्दी में भी उस समय अज्ञेय तथा गजानन माधव मुक्तिबोध की कठिन कविताओं का बोलबाला था। उस समय आम आदमी के लिए नागार्जुन तथा धूमिल जैसे कुछ कवि ही बच गए थे। इस समय सिर्फ़ ४२ वर्ष के जीवन में दुष्यंत कुमार ने अपार ख्याति अर्जित की।