‘Mere Ghar Ke Pashchim Or Rehti Hai’, Hindi Kavita by Suryakant Tripathi Nirala
मेरे घर के पश्चिम ओर रहती है
बड़ी-बड़ी आँखों वाली वह युवती,
सारी कथा खुल-खुल कर कहती है
चितवन उसकी और चाल-ढाल उसकी।
पैदा हुई है ग़रीब के घर, पर
कोई जैसे जेवरों से सजता हो,
उभरते जीवन की मीड़ खाता हुआ
राग साज पर जैसे बजता हो।
आसमाँ को छूती हुई वह आवाज़
दिल के तार-तार से मिलाई हुई,
चढ़ाती है गिरने का जहाँ नहीं डर
कली की सुगन्ध जैसे छाई हुई।
चढ़ी हुई है वह किसी देवता पर
जहाँ से लगता है सारा जग सुन्दर।
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