मेरे ख़्वाब ही मेरा सब कुछ हैं
जिनमें मैं कभी किसी झील पर उतरती पेड़ियों की आख़िरी सीढ़ी पर बैठकर बहते पानी की धुन में खो जाता हूँ,
तो कभी चढ़ते सूरज की आँख में आँख डाले रहता हूँ,
कभी अपनी प्रेमिका की बाहों में ही सदिया गुज़ार देता हूँ,
कभी किसी रोते हुए के आँसू पोछ देता हूँ,
कभी किसी बेहद उदास चेहरे से खुलकर बात करता हूँ, और मिटा देता हूँ उसकी सारी टीस,
कभी समाज की सारी कुरीतियों को जला देता हूँ, लोगों की रोज़मर्रा की ज़िन्दगी से निकालकर, कभी एक नई किताब लिख देता हूँ तहज़ीब की, जिसमें तहज़ीब का ही ज़िक्र ना हो,
किसी मज़दूर का पसीना सुखाने के लिए पंखा बन जाता हूँ, रास्तों जैसा आवारा हो जाता हूँ,
कभी खुशी के मौके पर भी मौत की बातें करता हूँ, और समझा देता हूँ सभी लोगों को कि ये आम बात है,
ठहर जाता हूँ किसी राजा के घर मुख्य अतिथि बनकर और वक़्त को रोक लेता हूँ,
साइकिल या किसी गाड़ी का टायर बनकर घूम जाता हूँ, और जाँच लेता हूँ ज़िन्दगी के गोल चक्र को,
कभी पेड़ बन कर भी खड़ा हो जाता हूँ, लंबी दुपहरी में रास्तों पर, और कर देता हूँ मुसाफिरों की ज़िन्दगी आसान।
या कभी मैं ही बादल बन कर बरस जाता हूँ।
मैं हजारों ज़िन्दगी जी लेता हूँ ख़्वाब में,
शायद ऐसा ख़्वाब में ही मुमकिन है कि एक जमींदार को एक मज़दूर आँख दिखा सके,
निकाल फेंके एक आम आदमी धर्म के, देश के ठेकेदारों को अपने घर से बाहर,
इज़हार हो जहाँ मोहब्बत का वो भी बेहिसाब,
लोग ज़रूरत से ज़्यादा कहीं मसरूफ़ ही ना हों,
जटिलताएँ हैं जो वास्तविकता में, वो ख़्वाब में नहीं होतीं,
शायद ऐसा ख़्वाब में ही हो सकता है और इसीलिए अब से मैं अपने ख़्वाब में ही जीऊँगा।