विवरण: लोगों में डर बैठाने की राष्ट्रीय योजना समाप्त हो चुकी है। वादा किए गए राष्ट्रीय राजमार्गों और नौकरियों से पहले, सभी को बिना चूके एक चीज़ दे दी गयी है- डर। प्रत्येक व्यक्ति के लिए अब डर ही रोज़ी है। हम सभी डर अनुभव कर रहे हैं; यह हम तक अलग-अलग रूपों में आ रहा है- उस क्षण से जब हम अपने घर से बाहर कदम रखते हैं, हमारे कानों में गूँजती असंख्य चेतावनियों के साथ। वह सिर्फ गोदी मीडिया है जो आज भारत में सुरक्षित है। ऑथोरिटी की गोद में जमकर बैठिए और कोई आपसे कुछ भी कहने की हिम्मत नहीं करेगा।
एक ऐसे समय में जहाँ भारत में अभिव्यक्ति की आज़ादी और व्यक्तिगत स्वतंत्रता गहरे खतरे में दिखाई देती है, रवीश कुमार हमारी सबसे साहसी और परिपक्व आवाज़ों में से एक हैं। आज बहुत कम पत्रकारों में उनके जैसी भारतीय समाज और राजनीति की समझ और सत्य के प्रति प्रतिबद्धता हैं। उनके जैसे वाक्पटु और ईमानदार तो और भी कम हैं।
इस ज़रूरी किताब में, रवीश निरीक्षण करते हैं कि क्यों बहस और संवाद ने भारत में नफरत और असहिष्णुता का रास्ता छोड़ दिया है, कैसे निर्वाचित प्रतिनिधि, मीडिया और दूसरे संस्थान हमारी अपेक्षाओं पर असफल हुए हैं और हमारे लोकतंत्र के इस नुकसान की भरपाई किन तरीकों से की जा सकती है।
लेखक: रवीश कुमार लेखक, पत्रकार व सोशल कमेंटेटर, NDTV इंडिया में सीनियर एग्जीक्यूटिव एडिटर हैं। रवीश की अन्य किताबें ‘इश्क़ में शहर होना’, ‘देखते रहिए’ और ‘रवीशपंती’ हैं।