‘Paper Wala Chhotu’, a poem by Vishal Singh

उसने अपना हक़ माँगा था,
उसको थप्पड़ फिर क्यूँ मारा

जिस पेपर वाले छोटू के
बाबा अँधे, अम्मा तारा

बस्ता सपना, क़िस्मत दुश्मन
फिर भी आँखों में सपने सौ

कहता है धीरे से साहब
मारो मत, मेरे पैसे दो

मेरा रस्ता तकता होगा
घर पे छोटा भाई प्यारा

लेनी है दो रोटी मुझको
भूखा होगा वो बेचारा

छोटू-छोटू क्या करते हो
तुम उसके आगे छोटे हो

तुम बूते पे अब भी घर के
वो ख़ुद में अपना घर सारा

उसने अपना हक़ माँगा था,
उसको थप्पड़ फिर क्यूँ मारा…

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प्रशस्त विशाल
25 अप्रैल, 2000 को भोपाल (म.प्र.) में जन्मे प्रशस्त विशाल एक युवा उद्यमकर्ता, सिविल अभियांत्रिकी छात्र व लेखक हैं । ई-मेल पता : [email protected]