पहले तो मुझे कहा निकालो
फिर बोले ग़रीब है बुला लो

बे-दिल रखने से फ़ाएदा क्या
तुम जान से मुझ को मार डालो

उस ने भी तो देखी हैं ये आँखें
आँख आरसी पर समझ के डालो

आया है वो मह बुझा भी दो शम्अ
परवानों को बज़्म से निकालो

घबरा के हम आए थे सू-ए-हश्र
याँ पेश है और माजरा लो

तकिए में गया तो मैं पुकारा
शब तीरा है जागो सोने वालो

और दिन पे ‘अमीर’ तकिया कब तक
तुम भी तो कुछ आप को सँभालो

अमीर मीनाई
मुंशी अमीर अहमद "मीनाई" (जन्म १८२८-मृत्यु १९००) एक उर्दू शायर थे। 1857 के ग़दर के बाद ये रामपुर चले आए और ४३ वर्षों तक वहाँ रहे। १९०० में हैदराबाद जाने के बाद इनकी मृत्यु हो गई। इन्होंने २२ किताबें लिखीं जिसमें ४ दीवान (ग़ज़ल संग्रह) हैं।