कोई उसे धक्का मारकर टेढ़ा कर देने का श्रेय लेना चाहता था
कोई जुड़ जाना चाहता था उछलकर
सूरज और मीनार को जोड़ती काल्पनिक सरल रेखा से
किसी ने कोशिश की उसे अँगूठे से दबा देने की
किसी ने आइसक्रीम के शंकु में भर खा जाने की
ट्रिक फ़ोटोग्राफ़ी करने में जुटे सैलानियों के बीच
मैं विराटता महसूस कर रहा था
पीसा की झुकी मीनार की
अष्टावक्र के एक वक्र-सी झुकी
उस मीनार के सामने मेरे पहुँच जाने में
संयोग था तो बस इतना
कि फ़्रांस के उस शहर नीस से
जहाँ मैं काम से गया था
बहुत दूर नहीं था इटली का पीसा शहर
इतना दूर तो हरगिज़ नहीं
कि उन्नीस साल का इंतज़ार उसके सामने घुटने तक दे
और बचपन में स्वयं से किए वादे को पूरा करने के लिए
मैं फूँक ही सकता था
बचायी हुई कुछ रक़म
उन्नीस साल पहले
नौवीं कक्षा की पढ़ाई के दौरान
पढ़ा था मैंने गैलीलियो का वह प्रसिद्ध प्रयोग
वस्तुओं के द्रव्यमान और पृथ्वी के गुरुत्व के बारे में
जो पीसा की इसी झुकी मीनार से किया गया था
तभी मेरी ख़ुद के साथ एक महत्त्वपूर्ण बैठक के दौरान
यह तय हुआ था कि मुझे जाना है पीसा
झुकी मीनार पर चढ़ना है
हालाँकि तब मेरे पास नहीं होते थे साइकिल का पंक्चर जुड़वाने के भी पैसे
और कई बार जुगाड़ के पीछे लटककर आता था मैं स्कूल
यह जानकर कि जब तक मीनार के द्रव्यमान केंद्र से डाला गया लम्ब
गिरता रहेगा आधार पर मीनार के
तब तक ही खड़ी रहेगी मीनार
मैं करता रहा हूँ
पीसा की मिट्टी की पकड़ मज़बूत होने की प्रार्थना
मीनार तक पहुँचना
मेरी प्रार्थनाओं और अदम्य कोशिशों का फल था
मीनार के ऊपर चमकता वह सूरज
किताबों और टेलिस्कोप डोम में किए
सर्द रतजगों के बाद हुआ था नसीब
चढ़ते हुए मीनार की संकरी सीढ़ियाँ
मैंने हवा में तैरता हुआ महसूस किया
गैलीलियो का झीने परदे जैसा अस्तित्व
बीच से घिस चुके सीढ़ियों के पत्थरों पर
मैंने ढूँढा उन्हें घिसने में गैलीलियो के पाँवों का योगदान
यह उम्मीद रखते हुए
कि चार सौ साल से ज़्यादा के इतिहास में
काश कि ना बदले गए हों सीढ़ियों के पत्थर
मैं नहीं जानता कि
गुरुत्व के अपने प्रयोग के बाद महान गैलीलियो
मीनार के ऊपर से हँसे होंगे या रहे होंगे अविचल
यूँ भी दुनिया के सामने सिद्ध करने से पहले
वे स्वयं तो जानते ही थे निपट सच, गुरुत्व के उस पहलू का
वैसे भी यह नहीं था गैलीलियो का एकमात्र प्रयोग
यह एक पड़ाव-भर था उनकी अनगिनत उपलब्धियों की यात्रा का
कभी किसी उदासी के दौर में
जब दबाया बजा रहा था विज्ञान को पोंगी आवाज़ों के द्वारा
शायद कभी उदास बैठने आए हों गैलीलियो मीनार पर
तब शायद हँसे हों वे पूरी दुनिया की मूर्खता पर
मीनार की दीवार से पीठ सटाकर
या, हँसते-हँसते चढ़ीं हों मीनार की सीढ़ियाँ शायद
उन्हीं सीढ़ियों पर चढ़ने के बाद
लटके हुए, बड़े-से ऐतिहासिक घंटे के सामने
चुपचाप चला आया था मेरे सामने
कितने ही जीवित बिम्बों का सैलाब
कुछ मेरे हिस्से का इतिहास
कुछ गैलीलियो के बारे में पठित-कल्पित का फ़्यूज़न
पीसा की झुकी मीनार के सबसे ऊपर पहुँचकर
मैं तनकर नहीं खड़ा था, ज़रा-सा भी
मेरी आँखें थीं नम
और मैं फिर नौवीं कक्षा में था…
देवेश पथ सारिया की कविता 'एक तारा विज्ञानी का प्रेम'