माँ ने नहीं देखा है शहर
गुज़रता है मोहल्ले से
जब कभी कोई फेरीवाला
हाँक लगाती है उसे मेरी माँ
माँ ख़रीदती है
रंग-बिरंगे फूलों की छपाई वाली चादर
और जब कोई परिचित आने को होता है शहर
उसके हाथों भिजवा देती है
माँ ने नहीं देखा है शहर
बस टेलीविज़न पर देखती रहती हैं ख़बरें
सुनती रहती हैं क़िस्सा
बड़ी-बड़ी इमारतों का
लम्बी-चौड़ी सड़कों पर चारपहिए की कतारों का
शहर से लौटा कोई आदमी
जब नहीं करता है बात
आकाश, चिड़ियाँ, वृक्षों, घोसलों और नदियों की
उन्हें लगता है—
शहर में नहीं खिलते हैं फूल
उगती हैं सिर्फ़ इमारतें यहाँ।
अनुरोध
धुंधलका छट रहा है
सूरज के खिलने की सुगंध पूरब से आ रही है
पंछियों ने अपने घोंसलों से झाँकना शुरू कर दिया है
अभी-अभी एक हवाई जहाज़ छत के ऊपर से गुज़रा है
जिसके शोर से काँच की खिड़कियाँ कुछ वक़्त के लिए काँप गईं
इस सबसे उदासीन
अपनी स्थायी कुर्सी पर बैठे ऊँघ रहा है पहरेदार
यह कोई नई बात नहीं है
ऐसा अमूमन हर रोज़ होता है
लेकिन जब मैं लिपिबद्ध कर रहा हूँ यह सब
ठीक उसी समय
हवा के दो फाँक करते हुए
धम से गिर पड़ा है
नीम का एक पुराना पेड़
जिसके गिरने के क़यास कई दिनों से लगाए जा रहे थे
मैं दर्ज कर रहा हूँ इसे एक घटना की तरह
आप सभी इसे एक दुर्घटना की तरह पढ़ें।
याद
एक वक़्त के बाद
नींद नहीं आती
बस! तुम्हारी याद आती है
तुम्हारी याद में
मैं गुड़हल-सा खिलता हूँ
महुए-सा टपकता हूँ
भरता हूँ नदी की तरह
और मोगरे-सा महकता हूँ
तुम्हारी याद में
चलता हूँ तुम्हारे साथ भीगते हुए
और बहुत प्यार से लेता हूँ
तुम्हारा नाम
हाँ, तुम्हारे नाम का एक अर्थ है मेरे जीवन में
जहाँ से मैं परिभाषित हो सकता हूँ।