जा कर
प्रतीक्षा करती-करती
सोयी
वह
रोयी
जा कर
दूसरे
जन्म में।
घड़ी जिसकी
प्रतीक्षारत
उसके सिर में
आज के दिन
टाइम-बम एक
घड़ी जिसकी ख़राब थी
बारूद
जिसका
चालू।
फिर सिर
देखा उस मायावी को
फिर रात
सपने में
फिर सिर
सफ़ेद था
सुबह उठने पर।
एक शूल
एक शूल
उसके भीतर
एक फूल
उसके भीतर
एक की
पीड़ा है
एक की
चिंता है।
सपने में
सपने में
मिली
उससे
गिरी जाकर
कुएँ में
सपने में
अब अगर
मिले
कोई रस्सी
सपने में
तो आए
वह बाहर?
गगन गिल की कविता 'लड़की बैठी है हँसी के बारूद पर'