‘Prarthana’, poems by Rupam Mishra

पराई पीड़ा में बहने वाले आँसू
प्रार्थना के गीत होते हैं!
क्षणिक ही सही
कम से कम उस पल के लिए हम पवित्र होते हैं!
इतने पवित्र कि मन का सारा खारापन
उस पवित्रता की ऊष्मा में पिघलकर
बह जाता है

***

प्रार्थना में जाना
हृदय का सबसे पवित्र स्थान्तरण है
दुःखों की अकुलाहट हमें वहीं ले जाती है

प्रार्थना ही है वो पानी जो
मन को अहम की संकुचित भित्ति से
निकालकर प्रक्षालित करती है

***

जब मुझ पर उकेरी गई तुम्हारी सारी उपमाएँ
थोथी हो गई होंगी
हम रजनी और प्रभात से
उमस भरे दिन और काली रात बन जाएँगे

मेरी सहजता चिड़चिड़ापन
और तुम्हारा आत्मगौरव
आत्मभिमान बन जाएँगे

और जब हमारा पवित्र प्रेम
जग के लांछन व घृणित व्यंग में परिवर्तित हो जाएगा
तब सौंदर्य में यही प्रार्थनाएँ बची रह जाएँगी,
जो हमने एक दूसरे के लिए कीं।

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